Rescue from incurable disease

Rescue from incurable disease
लाइलाज बीमारी से मुक्ति उपाय है - आयुर्वेद और पंचकर्म चिकित्सा |

The Enteritis and Ulcerative colitis- Crisis on Life .

आंत्रशोथ या सव्रण बृहदांत्रशोथ-  जीवन पर संकट:- 
यदि किसी रोगी को बार-बार दस्त (diarrhea) जाने लगते हों, मतली (nausea) या उल्टी (vomiting), भूख न लगना (loss of appetite), पेट में ऐंठन और दर्द (abdominal cramps and pain), जैसे लक्षण मिलते हों, साथ ही हमेशा या कभी कभी मल के साथ खून (bleeding) या आवं (mucus) निकलने लगती है , रोगी को ज्वर (fever), की प्रतीति भी हो सकती है - ये सब या कुछ लक्षण मिलते हों तो जान ले आपकी आंत विशेषकर बड़ी आंत में सूजन हो गई है, और हुए व्रण (घाव) से खून  बहने वाला रोग
जिसे एंट्रायटिस, (Enteritis), कोलायटिस (Ulcerative colitis)  जिसे सव्रण बृहदांत्रशोथ कहते हें हो गया है| 
आयुर्वेद में है इसकी चिकित्सा?  
एलोपेथिक चिकित्सा द्वारा से पूरी तरह ठीक न हो पाने वाला परन्तु आयुर्वेदिक चिकित्सा से पूरी तरह ठीक हो सकने वाला रोग है| 
इसकी आयुर्वेदिक चिकित्सा प्राथमिक अवस्था में ओषधि से पर पुरानी होने पर बस्ती चिकित्सा (पंचकर्म) द्वारा करके रोग जडमूल से समाप्त किया जा सकता है| 
किसको होता है यह रोग? 
निम्न और मध्यम वर्ग के लिए उपलब्ध पीने के पानी से लेकर खाने-पीने की लगभग प्रत्येक बस्तु, आवास, आने जाने के स्थान, वाहन, वातावरण सब कुछ संक्रमित है|  हर चीज प्रदूषित, अशुद्ध, मिलावटी है| यही नहीं  इनकी आदत भी अस्वच्छ स्थानों पर रहने, खाने, साफ सफाई के प्रति उदासीनता, की हो गई है| इसके चलते हमारे देश की बहुसंख्यक आबादी सव्रण बृहदांत्रशोथ नामक इस रोग से प्रभावित है| 
इस प्रकार के अधिकतर मामलों में जीवाणु संक्रमण खाने पीने की गडवडी (food poisoning) जिसे आयुर्वेद में मिथ्याहार-विहार कहा जाता है, से होता है|
घर में बिल्ली, कुत्ते आदि पालतू पशु से भी यह रोग फेल सकता है|
प्रारम्भ में तो पता भी नहीं चलता!
इसका प्रारम्भ भी होता है सामान्य से दिखने वाली पेट की तकलीफों से, और अधिकांश मामलों में रोग का पता भी नहीं चलता|  
सभी जानते हें की लगातार पेट में होने वाली छोटी छोटी तकलीफें आगे चलकर बड़े बड़े रोगों को जन्म देतीं हैं| युवा वस्था से ही पाचन क्षमता में कमी होने से और लम्बे समय से दिन में कई बार दस्त आने, और समय पर रोग का कारण (निदान) न हो पाने से बहुजन आबादी में बड़ी समस्याओं को पैदा कर रहा है| सामान्यत की जाने वाली जाँच कल्चर (जीवाणुओं की वृद्धि) करवा कर, या रक्तोदक (serology) जाँच में भी कुछ नहीं मिलता, जबकि HBT (hydrogen breath test) श्वास से निकलने वाली गेस की जाँच करने पर मीथेन अदि गेस की उपस्थिति ने जीवाणु संक्रमण होना सिद्ध किया जा सकता है| हालांकि निकलने वाली गेस की बदबूदार गंध इस रोग की जानकारी दे देती है| परन्तु प्रारम्भिक स्तिथि में अनदेखी, या साधारण बात ही आगे चलकर अधिक जीवाणु आन्त्र में अधिक पैदा कर बड़ी समस्या उत्पन्न कर देती है|
क्या यह बड़ी आंत का ही रोग है? 
इन जीवाणुओं का आंतों में पैदा होना और बढ़ना आंतों में पहिले सूजन पैदा करता है, फिर आंतों में घाव (अल्सर) होने लगते हें, आंत्रशोथ  (enteritis) जैसी भयानक रोग पैदा हो जाता है| सामान्यता यह आन्त्रशोथ छोटी आंतों का रोग है, परन्तु कई रोगियों में इसके साथ पेट या पक्वाशय में शोथ (gastritis) और बड़ी आंतों (large intestine) वृहद्न्त्र शोथ (colitis). भी मिलता है|
क्या केवल अस्वास्थ्यकर खाना-पीना ही इसका कारण है? 
आंत्रशोथ (Enteritis) कई प्रकार से या कारणों से भी हो सकता है इनमें प्रमुखता से मिलने वालों में विषाणु (viral) या जीवाणु (bacterial) के संक्रमण (infection), विकिरण (radiation), किसी ओषधि या दवा के दुष्प्रभाव (medication), शराव सेवन (alcohol intec), से भी हो जाता है|
क्यों होती इतनी तकलीफ इस रोग में?  
संक्रमण के कारण आंत्र शोथ (आंत में सुजन) होने पर पाचन संस्थान को होने वाली रक्त की आपूर्त्ति कम हो जाती है, और रोग इससे प्रतिरोधक क्षमता की कमी होने से शोथ या सूजन (inflammatory condition) होकर सव्रण बृहदांत्रशोथ (ulcerative colitis- आंतों में घावयुक्त सूजन), उत्पन्न होती है, इसी कारण रोगी ज्वर, दस्त, मतली, उलटी, पेटदर्द और शोच में खून आने की शिकायत करता है|
क्या यह स्वयं भी ठीक हो सकता है? 
वाइरल से होने वाला आंत्रशोथ कुछ दिन में ही स्वत: ठीक हो जाता है, परन्तु इसके साथ ही जीवाणु का भी संक्रमण होने या होने की सम्भावना के कारण चिकित्सा करवाना आवश्यक होता है, इस बात को नजर अंदाज कर देना अक्सर घातक सिद्ध होता है, इससे ही जीर्ण आंत्रशोथ (Chronic Enterites) होकर जीवन का संकट खड़ा कर सकता है|
सेवन किया जाने वाला जीवाणु दूषित भोजन या पानी से, वाइरल संक्रमण या पाचन की कमी के कारण आंतों में जीवाणु तेजी से बढ़ने लगते हें, और पूरी आंत को संक्रमित कर देते हें| प्रारम्भ में यह अधिक तकलीफ देह नहीं होती और रोगी इसे साधारण बात समझने की भूल कर ध्यान नहीं देता, इससे रोग जीर्ण होकर स्थाई और घटक स्तिथी पैदा कर देता है|
केवल दूषित खाना-पानी ही नहीं खाने पीने की वस्तुओं में रखरखाव की कमी, स्वच्छता की कमी, से खाना संक्रमित हो जाता है जिसके खाने पीने से रोग पैदा हो जाता है| इस प्रकार के सभी केस खाद्य विषाक्तता (food poisoning) के अंतर्गत आते हैं| 
कोनसे जीवाणु या विषाणु इस रोग का कारण हैं? 
इन जीवाणुओं में सल्मोनिला (Salmonella), ई कोली (Escherichia coli -E. coli), स्तेफिलोकोकास (Staphylococcus aureus) Campylobacter jejuni (C. jejuni), शिगेला (Shigella), Yersinia enterocolitica (Y. enterocolitica), बैसिलस प्रजाति Bacillus species, आदि हो सकते हें|
संक्रमण होने पर रोगी का पानी दस्त, पसीना,उलटी आदि से कम होने से पानी की कमी (dehydration) होती है अधिक प्यास, कमजोरी, थकान, सुस्ती, मूत्र कम, गंदला, बदबूदार आना, चक्कर आना, बुखार आदि आने लगता है| तीन चार दिन से अधिक संक्रमण रहने पर मल (stool) में खून भी आ सकता है|  
यह पानी की कमी किडनी, लीवर फेल होने या ह्रदय घात (Heart failure), या मारक सिद्ध हो सकती है|
चिकित्सा TREATMENT
अक्सर आधुनिक चिकित्सक इसके लिए एंटीबायोटिक का प्रयोग करते हें, परन्तु अनुभव में आया है की भी एंटीबायोटिक इन उपरोक्त जीवाणुओं को नष्ट करने के साथ ही शरीर के लाभदायक जीवाणुओं और एन्जाइम्स आदि  को भी नष्ट कर देती है, इससे प्रकृतिक पाचन क्षमता, रोग निरोधक शक्ति भी नष्ट हो जाती है, इससे विषाणु/ जीवाणु फिर से बड जाते हें, और रोग बार-बार होता रहता है| 
आयुर्वेदिक चिकित्सा से एसा नहीं होता, रोगी की प्राकृतिक क्षमता और भी बड जाती है, जो रोग को दुबारा होने नहीं देती| रोग की स्तिथि के अनुसार कुशल आयुर्वेदिक चिकित्सक ओषधि या पंचकर्म बस्ती चिकित्सा से आतं को पूर्ण रूप से विषाणु/जीवाणु रहित कर सकता है|     
तात्कालिक साधारण संक्रमण तो कुछ ही दिन में ठीक किया जा सकता है, पर एक कुशल अनुभवी आयुर्वेदिक चिकित्सक रोग की स्तिथि को समझ कर पूर्ण रोग मुक्त कर देता है| 
इस रोग की चिकित्सा पूर्ण रोग मुक्त होने तक आवश्यक रूप से लेना चाहिए, अन्यथा पुराना रोग बन कर जीवन भर कष्ट का कारण बनता देखा गया है| 
बस्ती चिकित्सा में रोग स्तिथि अनुसार दो सप्ताह से एक माह में रोग दूर हो जाता है| जबकि ओषधि चिकित्सा लम्बे समय  लेना पढ़ सकती है| 
आयुर्वेद चिकित्सा में  बृहदांत्रशोथ की चिकित्सा में स्वच्छता, रोग जनक वातावरण, भोजन-पानी से परहेज को प्राथमिकता दी गई है| 
चिकित्सा में कुटज, बिल्व, उदुम्बर क्वाथ, लोध्र छाल चूर्ण, नागरमोथा मूल चूर्ण , नागकेसर चूर्ण , कुटज घन वटी, उदुम्बर क्वाथ बस्ती, आदि कई द्रव्य, और योग प्रयुक्त होते हें| 
-----------------------------------------------------------------------------------------------
 समस्त चिकित्सकीय सलाह, रोग निदान एवं चिकित्सा की जानकारी ज्ञान (शिक्षण) उद्देश्य से है| प्राधिकृत चिकित्सक से संपर्क के बाद ही प्रयोग में लें| इसका प्रकाशन जन हित में किया जा रहा है।
आज की बात (28) आनुवंशिक(autosomal) रोग (10) आपके प्रश्नो पर हमारे उत्तर (61) कान के रोग (1) खान-पान (69) ज्वर सर्दी जुकाम खांसी (22) डायबीटीज (17) दन्त रोग (8) पाइल्स- बवासीर या अर्श (4) बच्चौ के रोग (5) मोटापा (24) विविध रोग (52) विशेष लेख (107) समाचार (4) सेक्स समस्या (11) सौंदर्य (19) स्त्रियॉं के रोग (6) स्वयं बनाये (14) हृदय रोग (4) Anal diseases गुदरोग (2) Asthma/अस्‍थमा या श्वाश रोग (4) Basti - the Panchakarma (8) Be careful [सावधान]. (19) Cancer (4) Common Problems (6) COVID 19 (1) Diabetes मधुमेह (4) Exclusive Articles (विशेष लेख) (22) Experiment and results (6) Eye (7) Fitness (9) Gastric/उदर के रोग (27) Herbal medicinal plants/जडीबुटी (32) Infectious diseaseसंक्रामक रोग (13) Infertility बांझपन/नपुंसकता (11) Know About (11) Mental illness (2) MIT (1) Obesity (4) Panch Karm आयुर्वेद पंचकर्म (61) Publication (3) Q & A (10) Season Conception/ऋतु -चर्या (20) Sex problems (1) skin/त्वचा (26) Small Tips/छोटी छोटी बाते (69) Urinary-Diseas/मूत्र रोग (12) Vat-Rog-अर्थराइटिस आदि (24) video's (2) Vitamins विटामिन्स (1)

चिकित्सा सेवा अथवा व्यवसाय?

स्वास्थ है हमारा अधिकार १

हमारा लक्ष्य सामान्य जन से लेकर प्रत्येक विशिष्ट जन को समग्र स्वस्थ्य का लाभ पहुँचाना है| पंचकर्म सहित आयुर्वेद चिकित्सा, स्वास्थय हेतु लाभकारी लेख, इच्छित को स्वास्थ्य प्रशिक्षण, और स्वास्थ्य विषयक जन जागरण करना है| आयुर्वेदिक चिकित्सा – यह आयुर्वेद विज्ञानं के रूप में विश्व की पुरातन चिकित्सा पद्ध्ति है, जो ‘समग्र शरीर’ (अर्थात शरीर, मन और आत्मा) को स्वस्थ्य करती है|

निशुल्क परामर्श

जीवन के चार चरणौ में (आश्रम) में वान-प्रस्थ,ओर सन्यास अंतिम चरण माना गया है, तीसरे चरण की आयु में पहुंचकर वर्तमान परिस्थिती में वान-प्रस्थ का अर्थ वन-गमन न मान कर अपने अभी तक के सम्पुर्ण अनुभवोंं का लाभ अन्य चिकित्सकौं,ओर समाज के अन्य वर्ग को प्रदान करना मान कर, अपने निवास एमआइजी 4/1 प्रगति नगर उज्जैन मप्र पर धर्मार्थ चिकित्सा सेवा प्रारंंभ कर दी गई है। कोई भी रोगी प्रतिदिन सोमवार से शनी वार तक प्रात: 9 से 12 एवंं दोपहर 2 से 6 बजे तक न्युनतम 10/- रु प्रतिदिन टोकन शुल्क (निर्धनों को निशुल्क आवश्यक निशुल्क ओषधि हेतु राशी) का सह्योग कर चिकित्सा परामर्श प्राप्त कर सकेगा। हमारे द्वारा लिखित ऑषधियांं सभी मान्यता प्राप्त मेडिकल स्टोर से क्रय की जा सकेंगी। पंचकर्म आदि आवश्यक प्रक्रिया जो अधिकतम 10% रोगियोंं को आवश्यक होगी वह न्युनतम शुल्क पर उपलब्ध की जा सकेगी। क्रपया चिकित्सा परामर्श के लिये फोन पर आग्रह न करेंं। ।

चिकित्सक सहयोगी बने:
- हमारे यहाँ देश भर से रोगी चिकित्सा परामर्श हेतु आते हैं,या परामर्श करते हें, सभी का उज्जैन आना अक्सर धन, समय आदि कारणों से संभव नहीं हो पाता, एसी स्थिति में आप हमारे सहयोगी बन सकते हें| यदि आप पंजीकृत आयुर्वेद स्नातक (न्यूनतम) हें! आप पंचकर्म चिकित्सा में रूचि रखते हैं, ओर प्रारम्भ करना चाह्ते हैं या सीखना चाह्ते हैं, तो सम्पर्क करेंं। आप पंचकर्म केंद्र अथवा पंचकर्म और आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रक्रियाओं जैसे अर्श- क्षार सूत्र, रक्त मोक्षण, अग्निकर्म, वमन, विरेचन, बस्ती, या शिरोधारा जैसे विशिष्ट स्नेहनादी माध्यम से चिकित्सा कार्य करते हें, तो आप संपर्क कर सकते हें| सम्पर्क समय- 02 PM to 5 PM, Monday to Saturday- 9425379102/ mail- healthforalldrvyas@gmail.com केवल एलोपेथिक चिकित्सा कार्य करने वाले चिकित्सक सम्पर्क न करें|

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

स्वास्थ /रोग विषयक प्रश्न यहाँ दर्ज कर सकते हें|

Accor

टाइटल

‘head’
.
matter
"
"head-
matter .
"
"हडिंग|
matter "