- शरीर की कुंडली
मिलाना?
चाहे माता-पिता आदि द्वारा तय किया विवाह (अरेंज्ड मेरीज) हो, या गंधर्व विवाह (लव-मेरिज) विवाह मूल रूप
से सामाजिक सन्तति वर्धन की प्रक्रिया है, इसी कारण विवाह का सम्बन्ध युवक -युवती के शरीर और स्वास्थ्य
से जुडा हुआ हो ही जाता है|
कई समाजों में
विशेषकर हिन्दुओं में जन्म कुंडली मिलाना प्राथमिक माना जाता है, या इसके जैसी ही
अन्य बातों पर धर्म के मान से विचार किया जाता है| “पड़े-लिखे” जो स्वयं को विद्वान
समझते हें वे भी कुंडली मिलान या इस प्रकार की परम्परा को प्राथमिक आवश्यकता मानते
हें|
विवाह के बाद, विशेष कर प्रेम विवाह (लव मेरिज) करने
वाले युगुल जो बिना कुछ सोचे समझे भावनाओं में भर कर विवाह कर लिया करते हें| ये
भावनाएं कुछ समय बाद कम होने लगतीं है और फिर अपनी संतान, या वारिस को जन्म देने,
पितृत्व या मात्रत्व का आनदं पाने की भावना उत्पन्न होने लगती है| यदि सबकुछ ठीक
ठाक चला तो ऐसे मामलों में सामान्यत कोई विवाद नहीं होता, परन्तु कई मामलों में संतान
हीनता, तलाक, अलगाव, अथवा कडुवाहट भरा जीवन जीने के लिए विवश होना पड़ता है|
वर्तमान समाज
में ही जरा इस बात का सर्वेक्षण, (survey) करें,
तो पाएंगे की इन उपरोक्त किसी भी एक समस्या से अधिकांश (75%
) युवा इससे पीड़ित है, और मजे की बात यह भी है
की अधिकांश मामलों 95 % में उन सभी का विवाह जन्म कुंडली
मिला कर, या भावनाओं में बह कर किया गया था|
विवाहित जीवन की
सफलता विवाह पूर्व की व्यग्र भावनाओं या जन्म कुंडली पर निर्भर नहीं रह सकती|
वह निर्भर होती है जीवन की वास्तविकताओं, और भविष्य सन्तति या वारिस
पर जिसकी जरुरत आगे पीछे होती ही है| सुखी
विवाहित जीवन के लिए क्या देखना जरुरी है?
अधिकांश विवाह
विच्छेद (तलाक), विवाद, आदि मामलों में, में अहंकार, धन-दहेज़, आदि समस्यायें गोण होती हैं, पर दिखाई वे ही
देती हैं, जो वास्तविक समस्याएं होती है,
उनके बारे में लज्जा, संकोच, के चलते अधिकांशत: दोनों पक्ष बताते ही नहीं, वह शरीर
विषयक समस्या होती हैं, इसी कारण और तलाक, अलगाव, यहाँ तक की हत्या भी हो जाया
करती है|
वास्तविक
कारण?
जब हम समाज में
तलाक, विच्छेद, और हत्याएं देखते हें तो भीरु मन अपनी संतान का सुख पाने
ज्योतिषियों की और पत्रिका मिलाने अदि के लिए जाता है जबकि जाना चाहिए मूल कारणों
की और!
और वे अधिकांश
मामलों में, नपुंसकता, शुक्राणु हीनता, बंध्यता (बच्चा न होना), आरएच फैक्टर समान
न होना, किसी एक या दोनों को एच आई वी, या गुप्त रोग (VDRL) होना, पाया जाता है|
इन समस्याओं का
एक ही निदान है, की दोनों की शिक्षा, आयु, व्यवसाय, कद काठी, सुन्दरता आदि योग्य
मानने के बाद, हेल्थ चेक अप को प्राथमिकता दी जाये|
वर्तमान सामाजिक
स्थिति को देखते हुए वर या वधु पक्ष एसी मांग करें, तो इस बात को अपमान माना जाकर
आलोचना हो सकती है| इसलिए प्रत्याशी स्वयं या माता पिता को अपनी सन्तान की यह
जांचे करा लेना चाहिए, और पाहिले अपनी स्वस्थ्य जांच रिपोर्ट विवाह सम्बन्ध तय
करने के पूर्व दूसरे पक्ष को देकर उनसे उनकी सन्तान की फिटनेस रिपोर्ट मांगना
चाहिए इससे दूसरा पक्ष बुरा भी नहीं मान पायेगा|
यदि जांचों में
कोई कमी / त्रुटी आती है तो पहले चिकित्सा करवा लेने पर समस्याएं होंगी ही नहीं|
विवाह पूर्व निम्न
जांचो को पूर्व में करा लेना ही लाभ दायक है!
आरएच
फैक्टर- रक्त समूह जाँच के अंतर्गत
होने वाली इस जाँच में, युवक युवती का यह फेक्टर एक सामान न होने पर गर्भ धारण,
प्रसव, आदि समय समस्या के अतरिक्त बच्चे में भी समस्या हो सकतीं है|
ओवरी
की जांच- 30 वर्ष की आयु के बाद अक्सर ओवेरी स्वस्थ्य नहीं रहती, और माँ
बनाने में समस्या हो सकती है, हायजनिक कंडीशन, पोषक आहार की कमी, कई दवाओं के
रिएक्शन, हार्मोनल समस्या आदि के कारण सामान्यत: गर्भाशय में संक्रमण होकर यह
समस्या होती है, पूर्व जाँच करा लेने से यदि
खराबी मिले तो समय रहते चिकित्सा की जा सकती है| संतान हीनता
जेनेटिक
टेस्ट – किसी को भी विशेषकर युवकों में 60% रोग जेनेटिक[1]
होते मधुमेह आदि[2] हें, जो भविष्य में जीवन में
संकट पैदा करते हें| ये आपसी मनमुटाव के कारण बन जाया करते हें|
इन्फर्टिलिटी
स्क्रीनिंग – यह जाँच युवक और युवती दोनों की
ही करना चाहिए, अरेंज मैरेज हो या लव मैरेज यदि कोई भी सेक्सुअली कमजोर या अक्षम
है, तो समय रहते जाँच से समस्या हल की जा सकती है| अक्सर बच्चा न होने की दशा में
जब दोनों पुरुष/ स्त्री की जाँच होते है, तो अधिकांश मामलों में पुरुष जो
प्रत्यक्ष रूप से तो स्वस्थ्य होता है पर वीर्य में मृत स्पर्म, स्पर्म की कमी पाई
जाती है, इससे संतान नहीं होती, इसकी चिकित्सा भी आसन है अत पूर्व जाँच समस्या
होने ही नहीं देगी|
एचआईवी
टेस्ट – एड्स नामक जान लेवा इस रोग का जानना जरुरी है|
यूँ तो शिक्षित
और उन्नत समाजों में इन बातों पर पहिले ही ध्यान होता है, परन्तु विवाह पश्चात् भी
यदि ये समस्याएं हों या पता चले तो निदान/ चिकित्सा करना ही बुद्धिमत्ता होगी,
इसके बजाय की तलाक, अलगाव, आदि का कष्ट उठाया जाये|
इसलिए कम से कम
ये जांचे करवाए और शरीर को स्वस्थ्य रखने के साथ जीवन को सरल, विवाद रहित, आसान
बनाने और मन और आत्मा के स्वास्थय के लिए विवाह से पूर्व उक्त जाँच अवश्य कराये|
इससे सब कुछ पूर्व ज्ञात होने से किसी प्रकार के अपमान, अलगाव, तलाक, और व्यर्थ
विवादों के लिए स्थान नहीं रहेगा|
[1] जीन में से एक या कुछ के
दोषोत्पादक होने के कारण संतान में वे ही दोष उत्पन्न हो जाते हैं।
[2] दमा, कैंसर,ciliopathies, भंग
तालु, मधुमेह, दिल की बीमारी, उच्च रक्तचाप, बौद्धिक अक्षमता, मूड डिसऑर्डर, मोटापा, बांझपन आदि|
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