Rescue from incurable disease

Rescue from incurable disease
लाइलाज बीमारी से मुक्ति उपाय है - आयुर्वेद और पंचकर्म चिकित्सा |

कैसे हो जाते हैं, कब्ज आदि पेट के रोग? ठीक करने के लिए क्या करें?

कैसे हो जाते हैं, कब्ज आदि पेट के रोग? ठीक करने के लिए क्या करें? 

  आजकल शहरी मध्यम वर्ग, विशेषकर एसे वर्ग में जिसमें शारीरिक परिश्रम करके आजीविका नहीं चलाई जाती हो, उनमें कब्ज जैसी यह समस्या या इस जैसी पेट की अन्य समस्याए, अधिक देखने मिलती हें, और अक्सर, “ मुझे सुबह शौच बहुत देरी से आता है, कम आता है, आता नहीं है, शोच के बाद भी अच्छा नहीं लगता, जी चाहता है और शोच आये, क्या यह किसी पेट के रोग का लक्षण है, यदि है तो कोई उपाय बताएँ॥“ जैसे अन्य प्रश्न पूछे जाते है। 

  इस प्रकार के कब्ज आदि पेट रोगों का कारण वर्तमान आपाधापी से भरी जीवन शेली प्रमुख है। हम हर काम शीघ्र निपटा देना चाहते हैं। जैसे हमारे पास बहुत काम हैं। पर क्या स्वस्थ्य जीवन जीने से महत्वपूर्ण भी कोई काम है। यदि दो वक्त का खाना भी ठीक प्रकार से न खा पाए, तो फिर उसके लिए अर्जन(कमाने) से क्या लाभ? 
  प्रतिदिन हम हम अपनी नोकरी या व्यवसाय आदि के कारण से या तो सुबह जल्दी जल्दी अपनी देनिक क्रियाएं कर आधा अधुरा, या जो मिला सो नाश्ता कर भागते हें, या रात्रि को देरी से सोने और काम पर देरी से पहुचने की सुविधा आदि होने पर, देरी से उठते हें। दिन भर भी भोजन पानी जल्द-बाजी में करते रहते हें। यदि स्वयं का व्यवसाय भी है, या विद्यार्थी हें, अथवा सेवा निवृत्त जीवन जी रहे हें, तो भी तो भी जीवन चर्या लगभग इसी प्रकार की चलती रहती है। जीवन भर की आदत भी भागम-भाग बंद होने के बाद भी नही छूट पाती, और अधिकतर को प्रात: उठने के बाद अधिक देर से शोच होना, या ठीक न होने से मन में अप्रसन्नता, चिडचिडापन, आदि समस्याएं बनी रहता है। इस समस्या को लेकर हम अक्सर सबसे पाहिले हम एसी व्यवस्था जिसमें स्वयं कारण हों को ही दोषी मानने लगते हें, जैसे हम मानते हें की मिलावट, प्रदुषण, नोकरी, जिम्मेदारी आदि ही दोषी है। पर इनके अतिरिक्त और भी कई कारण हो सकते हें, जिनका निदान कर आप लाभ ले सकते हें। यही नहीं जिन समस्याओं को आप विवशता मानते हें उनका हल भी आप स्वयं कर सकते हें। 
  सबसे पहिले हम सभी इसके लिए जिम्मेदार कारणों को जानेगें। 
1. रात्रि खाना को देरी से खाना।
2. पानी कम पीना।
3. पानी अधिक पीना।
4. खाने में ठोस, तरल का अनुपात लगभग 35:65 न होना।
5. खाने में फाइबर जो सलाद, आदि से मिलता है नहीं या कम खाना ।
6. खाने में प्रोटीन अपर्याप्त हो।
7. फ़ास्ट फ़ूड, अधिक मिर्च मसाला (नमकीन सेव,कचोरी सहित सभी) का रोज या मुख्य भोजन के समय खाना।
8. खाने में समय की अनियमितता।
9. रात्रि को देरी से और प्रात; अधिक देर तक सोना।
10. पेचिश होना।
11. वोर्म्स (पेट में क्रमी) होना।
12. किसी ओषधि का सतत प्रयोग।
13. पीने के लिए भारी/खारा/या प्रदूषित पानी मिलना।
14. दैनिक क्रियाये जिनमें दांतों पर ब्रश, मुहं गला आदि की ठीक सफाई, स्नान और साफ़ कपड़ों के प्रयोग से शरीर को साफ न रख पाना।
15. मल प्रव्रत्ति या वेग को रोकना (शोच आने पर रोकना या टालना)

  उपरोक्त सामान्य कारण होते हें, इनके अतिरिक्त प्राक्रतिक आंतों या पाचन संस्थान के किसी भाग में कोई जन्म जात या बाद में उत्पन्न विकृति, जैसे लीवर की खराबी, दांतों की तकलीफ, के साथ साथ चिंता, उद्वेग,जागरण, आदि मानसिक कारण भी इसके जिम्मेदार हो सकते हें। 

  कब्ज का एक प्रमुख कारण रात्री को देरी से खाना खाना, और खाने के बाद ही सो जाना है। इससे जब हम सोते हें तब खाना अमाशय में उपस्थित होता है, प्राणी की सक्रियता से आमाशय में पाचन रस अधिक सक्रिय रहते हें। विश्राम की अवस्था में शारीरिक गतियाँ कम हो जाने से पाचन रस कम आ पाता है। हलचल बंद होने से पेस्ट ठीक से नहीं बनता, यह भोजन आगे बड कर डोडीनम पहुचना चाहता है, पर कम पचा या अच्छा पेस्ट न होने के कारण उसकी पतली राह से केवल पचा खाना निकलता है। शेष को प्रतीक्षा करनी होती है इससे भोजन से देरी से पचने वाला और जल्दी पचने वाला खाना अलग अलग हो जाता है, इस प्रकार यह छोटी आंतों में पहुचने पर शोषण के समय अलग अलग होना आंत्र गति (पेरिस्टेल सीस) पर असर डालता हेई, और एक भाग वहीँ या आगे बड़ी आंत या कोलन में जमने लगता है। यही बाद में कब्ज या विवंध का कारण बन जाता है। 

   पानी कम पीने या ठोस आहार अधिक लेने से भी यही होता है। हमारा शरीर का 70% पानी या तरल है, अत: भोजन भी इसी अनुपात में किया जाना चाहिए। हालाँकि हमारा शरीर किसी भी प्रकार से लार, पाचक रस, या रक्त से पानी खींचता जरुर है, पर इसकी भी एक सीमा होती है, जब अधिक नहीं खीच पाता तो अमाशय में अम्ल अधिक हो जाने से एसिडिटी जैसी तकलीफ होने लगाती है। 

   पानी की अधिकता से खाना कम मात्रा में पहुंचता है, और पाचक रस के कम होने (डायल्युट) से पच नहीं पाता, कम या बिना पचा खाना आगे बड जाता है, जो आंतों में जमता है। 

   खाने में प्रयाप्त फाइबर (रेशा) न होने से घर्षण की कमी भोजन को उलट-पुलट नहीं होने देती और भोजन जमता है। 

   प्रोटीन की कमी से मांस धातु का पोषण तो कम होता ही है साथ ही मल भी कम बनता है, जो आंतों की लम्बी यात्रा तक सूख़ कर जम जाता है। इस तरह यह भी कब्ज का कारण होता है। 

   मिर्च मसाला, फ़ास्ट फ़ूड भी अपनी तेजी से पचने के गुण के कारण आंतों में सूख कर कब्ज और एसिडिटी आदि पैदा करता है। यदि व्यक्ति थोडी मात्रा में इनका सेवन करे अर्थात अन्य खाद्य को भी (1:3 के अनुपात में) लेता रहे तो कब्ज की संभावना नहीं होगी। पर अक्सर एसा न होकर हम इनसे ही पेट भर कर कब्ज के रोगी बन जाते हें। 
   खाने के समय में अनियमितता, असयमित जीवन  भी कब्ज आदि का एक प्रमुख कारण है। इससे शारीरिक गतिविधियों को सहज होने का अवसर नहीं मिलता। खाने के समय में बार बार परिवर्तन से शरीर भी अपने पाचक रसों, क्रियाओं, से सामंजस्य (तालमेल) नही रख पाता, बार-बार अधिकता और कमी, पाचक तंत्र को अस्त-व्यस्त कर देती है, परिणाम कब्ज आदि पेट रोग हो जाते है। 

   सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक सूर्य चक्र का प्रभाव सभी प्राणियो के पाचन तंत्र पर भी होता है, अनुभव होगा की अधिक गर्मी में पाचन ख़राब होता है, [वैसे ही जैसे अधिक गर्मी सर्दी में दही जमने की प्रक्रिया कम अधिक या बंद हो जाती है। क्योंकि दही में भी एक कोशीय जीव होते हैं.] इसी प्रकार दिन व् रात के अलग अलग समय पर अलग अलग तापमान का प्रभाव पाचन प्रणाली पर होता है। प्रत्येक सामान्य प्राणी की तरह मनुष्यों में भी प्रकृति सम्मत जागरण का समय प्रात: सूर्योदय या सूर्यास्त के 1से 3 घंटे पूर्व तक उचित है। यह सिद्ध पाया है की सामान्य मनुष्य को निद्रा 8-9 घंटे पर्याप्त है, इसके अनुसार न चलने पर देरी से जागने सोने से आप्रकृतिक व्यवस्था पाचन तंत्र प्रभावित करती है। 

   इन उपरोक्त सामान्य कारणों के अतिरिक्त पेट में संक्रमण आदि से क्रमी पेचिश आदि आदि के अनेक जीवाणु भी पाचन तंत्र प्रभावित कर पेट रोग पैदा करते हैं। 

   ओषधियों का सतत प्रयोग, खाध्य पदार्थों पर दवाओं का छिडकाव, मिलावट आदि से भी पाचन तन्त्र ख़राब होता है।

    हमको पीने के लिए सामान्यतय: हलका और मीठा पानी चाहिए, भारी और खारा पानी हाजमा ख़राब कर देता है, यह सतत मिलने पर पाचन प्रणाली प्रभावित हो जाती है। 

   हममे से कई लोग सोचते हें की साफ सफाई का कब्ज से क्या सम्बन्ध।

   देनिक स्नान साफ सफाई का अभाव जिसमें प्रति दिन मुहं-दांत-आदि बाहरी ओर गुप्तांग जैसे गुह्य स्थानों की सफाई का अभाव मानसिक आलस की वृद्धि कर शारीरिक गतिविधियों में कमी के साथ जीवाणुओं को भी अपने इस शरीर रूपी घर में मेहमान बनाने लगता है, यह सब पाचन तंत्र को ख़राब करने के लिए क्या पर्याप्त नहीं है।
   मल प्रव्रत्ति या वेग को रोकना (शोच आने पर रोकना या टालना) एक बहुत ही साधारण सी लगने वाली बात है, और अक्सर हम यह नहीं जानते की शोच आने या हाजत होने पर रोकना और बार बार रोकने की आदत हो जाना पेट की समस्याओं को आमंत्रित कर्ता है| बच्चो में भी यही बात देखी जाती है|
   मलाशय में पहुंचा हुआ खाने का शोषित शेष भाग जो मल होता है, जो अनावश्यक है, यदि वहां अधिक दरी तक पड़ा रहे तो वहां भी उसका पानी रक्त वाहिनियों द्वारा शोषित(अब्जोर्ब) किया जाता रहता है, यहाँ उसे कही से भी कोई जलियांश या कोई भी रस नहीं मिलता अत: सूख कर जमने के आलावा और कोई विकल्प नहीं होता| यह सुखा मल रस्ते को रोक कर विवन्ध (शोच न आना) पैदा करता है, यहाँ सड़ता हुआ मल दुर्गन्ध, और कई रोग पैदा कर देता है| 

  चिकित्सा –

   ऊपर लिखित सभी बातों को बार बार कई बार पड़ने से आपको अपने पेट के रोग कब्ज आदि के कारणों का पता चल जायेगा, यदि आप हटा सकते हें तो रोग से मुक्ति आसानी से मिल सकती है, जरुरत होने पर सुयोग्य चिकित्सक या वैद्य से परामर्श कर, कारण हटाने के साथ साथ, कुछ सामान्य से घरेलु उपाय अपना कर, या आवश्यक हो तो ओषधि लेकर [जो रोग अनुसार अलग होती है,] कब्ज से मुक्ति पा सकते हें। रोग आदि होने पर कब्ज दूर करने की साधारण ओषधि या व्यवस्था जैसे हरड आदि चूर्ण,अरंड तेल आदि जुलाब, एनिमा, अकेले पर्याप्त नही होती, रोगों से मुक्ति प्राथमिकता होती है।
      विवंध या मलाशय में जमे सूखे मल को केवल वस्ति (एनिमा) द्वारा ही निकला जाना संभव रहता है| कुछ रेचक ओषधियाँ थोडा बहुत धक्का देकर निकल बहार करने की कोशिश जरुर करतीं हें पर विवंध पूरा ठीक नहीं किया जा सकता|
   आयुर्वेदिक पंचकर्म  पद्धति में इस प्रकार के सभी मल को निकलने के लिए बस्ती चिकित्सा श्रेष्ट रहती है|  
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
हमने भी इस विषय में कई लेख लिखें हें। सर्च कर देख सकते हें,- “हेल्थ फार आल डॉ व्यास” की लिंक –  Digestive System/पाचन संस्थान\ पेट के रोग- [http://healthforalldrvyas.blogspot.in/p/digestiv-system.html]   
 डॉ मधुसूदन व्यास एम् आई जी 4/1 प्रगति नगर उज्जैन मप्र । २८ जनवरी २०१५  
लिंक -  विशेष लेख  विभिन्न विषयों पर हमारे विशेष लेख| 
   
समस्त चिकित्सकीय सलाह रोग निदान एवं चिकित्सा की जानकारी ज्ञान(शिक्षण) उद्देश्य से हे| प्राधिकृत चिकित्सक से संपर्क के बाद ही प्रयोग में लें| आपको कोई जानकारी पसंद आती है, ऑर आप उसे अपने मित्रो को शेयर करना/ बताना चाहते है, तो आप फेस-बुक/ ट्विटर/ई मेल/ जिनके आइकान नीचे बने हें को क्लिक कर शेयर कर दें। इसका प्रकाशन जन हित में किया जा रहा है।

कोई टिप्पणी नहीं:

आज की बात (28) आनुवंशिक(autosomal) रोग (10) आपके प्रश्नो पर हमारे उत्तर (61) कान के रोग (1) खान-पान (69) ज्वर सर्दी जुकाम खांसी (22) डायबीटीज (17) दन्त रोग (8) पाइल्स- बवासीर या अर्श (4) बच्चौ के रोग (5) मोटापा (24) विविध रोग (52) विशेष लेख (107) समाचार (4) सेक्स समस्या (11) सौंदर्य (19) स्त्रियॉं के रोग (6) स्वयं बनाये (14) हृदय रोग (4) Anal diseases गुदरोग (2) Asthma/अस्‍थमा या श्वाश रोग (4) Basti - the Panchakarma (8) Be careful [सावधान]. (19) Cancer (4) Common Problems (6) COVID 19 (1) Diabetes मधुमेह (4) Exclusive Articles (विशेष लेख) (22) Experiment and results (6) Eye (7) Fitness (9) Gastric/उदर के रोग (27) Herbal medicinal plants/जडीबुटी (32) Infectious diseaseसंक्रामक रोग (13) Infertility बांझपन/नपुंसकता (11) Know About (11) Mental illness (2) MIT (1) Obesity (4) Panch Karm आयुर्वेद पंचकर्म (61) Publication (3) Q & A (10) Season Conception/ऋतु -चर्या (20) Sex problems (1) skin/त्वचा (26) Small Tips/छोटी छोटी बाते (69) Urinary-Diseas/मूत्र रोग (12) Vat-Rog-अर्थराइटिस आदि (24) video's (2) Vitamins विटामिन्स (1)

चिकित्सा सेवा अथवा व्यवसाय?

स्वास्थ है हमारा अधिकार १

हमारा लक्ष्य सामान्य जन से लेकर प्रत्येक विशिष्ट जन को समग्र स्वस्थ्य का लाभ पहुँचाना है| पंचकर्म सहित आयुर्वेद चिकित्सा, स्वास्थय हेतु लाभकारी लेख, इच्छित को स्वास्थ्य प्रशिक्षण, और स्वास्थ्य विषयक जन जागरण करना है| आयुर्वेदिक चिकित्सा – यह आयुर्वेद विज्ञानं के रूप में विश्व की पुरातन चिकित्सा पद्ध्ति है, जो ‘समग्र शरीर’ (अर्थात शरीर, मन और आत्मा) को स्वस्थ्य करती है|

निशुल्क परामर्श

जीवन के चार चरणौ में (आश्रम) में वान-प्रस्थ,ओर सन्यास अंतिम चरण माना गया है, तीसरे चरण की आयु में पहुंचकर वर्तमान परिस्थिती में वान-प्रस्थ का अर्थ वन-गमन न मान कर अपने अभी तक के सम्पुर्ण अनुभवोंं का लाभ अन्य चिकित्सकौं,ओर समाज के अन्य वर्ग को प्रदान करना मान कर, अपने निवास एमआइजी 4/1 प्रगति नगर उज्जैन मप्र पर धर्मार्थ चिकित्सा सेवा प्रारंंभ कर दी गई है। कोई भी रोगी प्रतिदिन सोमवार से शनी वार तक प्रात: 9 से 12 एवंं दोपहर 2 से 6 बजे तक न्युनतम 10/- रु प्रतिदिन टोकन शुल्क (निर्धनों को निशुल्क आवश्यक निशुल्क ओषधि हेतु राशी) का सह्योग कर चिकित्सा परामर्श प्राप्त कर सकेगा। हमारे द्वारा लिखित ऑषधियांं सभी मान्यता प्राप्त मेडिकल स्टोर से क्रय की जा सकेंगी। पंचकर्म आदि आवश्यक प्रक्रिया जो अधिकतम 10% रोगियोंं को आवश्यक होगी वह न्युनतम शुल्क पर उपलब्ध की जा सकेगी। क्रपया चिकित्सा परामर्श के लिये फोन पर आग्रह न करेंं। ।

चिकित्सक सहयोगी बने:
- हमारे यहाँ देश भर से रोगी चिकित्सा परामर्श हेतु आते हैं,या परामर्श करते हें, सभी का उज्जैन आना अक्सर धन, समय आदि कारणों से संभव नहीं हो पाता, एसी स्थिति में आप हमारे सहयोगी बन सकते हें| यदि आप पंजीकृत आयुर्वेद स्नातक (न्यूनतम) हें! आप पंचकर्म चिकित्सा में रूचि रखते हैं, ओर प्रारम्भ करना चाह्ते हैं या सीखना चाह्ते हैं, तो सम्पर्क करेंं। आप पंचकर्म केंद्र अथवा पंचकर्म और आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रक्रियाओं जैसे अर्श- क्षार सूत्र, रक्त मोक्षण, अग्निकर्म, वमन, विरेचन, बस्ती, या शिरोधारा जैसे विशिष्ट स्नेहनादी माध्यम से चिकित्सा कार्य करते हें, तो आप संपर्क कर सकते हें| सम्पर्क समय- 02 PM to 5 PM, Monday to Saturday- 9425379102/ mail- healthforalldrvyas@gmail.com केवल एलोपेथिक चिकित्सा कार्य करने वाले चिकित्सक सम्पर्क न करें|

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

स्वास्थ /रोग विषयक प्रश्न यहाँ दर्ज कर सकते हें|

Accor

टाइटल

‘head’
.
matter
"
"head-
matter .
"
"हडिंग|
matter "