Rescue from incurable disease

Rescue from incurable disease
लाइलाज बीमारी से मुक्ति उपाय है - आयुर्वेद और पंचकर्म चिकित्सा |

हेल्थ बडाना चाहता हूँ?

हेल्थ बडाना चाहता हूँ,
डॉ. मधु सूदन व्यास 
हेल्थ बडाना चाहता हूँ, मोटा होना चाहता हूँ, मेरा वजन बड़ता क्यों नही हे,  पतला होना चाहता हूँ,वजन केसे कम करू, बीमारी से केसे बच सकता हूँ,- आदि आदि जेसे प्रश्न   के उत्तर के लिए कई भाई या बहिन,  चिकित्सकों से या अन्य किसी से भी पूछते रहते हें।

 हर चिकित्सक या व्यक्ति अपनी जानकारी,या तात्कालिक लाभ-हानी, या परिस्थिति के अनुसार उत्तर देता है। निश्चय ही इन सभी प्रश्नों का उत्तर एक हो भी नहीं सकता।
परन्तु आयुर्वेद के द्रष्टिकोण से उत्तर एक भी हो सकता है।
इस प्रकार के सभी प्रश्नों के उत्तर में इस एक श्लोक द्वारा भी कहा जा सकता है-

सम दोष: समाग्निश्च सम धातु:मल: क्रिया ।
प्रसानात्मेंद्रिया स्वास्थ्य इत्य विधीयते।

संस्कृत के  इन शब्दों का अर्थ हे ,जिसके दोष,अग्नि,धातु सम(सामान्य) हों, मल क्रिया सामान्य हो, जिसकी सभी इन्द्रियां,और मन स्वस्थ हो,स्वस्थ कहलाता है

सभी  को यह बात समझ नहीं आई होगी इस लिए में अति सक्षेप में इसका भाव कहने का प्रयत्न कर रहा हूँ।

पर इसके पूर्व यह दोष ,धातु आदि, क्या हें? यह भी समझना होगा।(यह लेख  उन सभी सामान्य  जनों के लिए कही जा रही हें जिन्हें  आयुर्वेद विषय के सिधान्तों का पठन नहीं किया है)

वात,पित्त, और कफ, ये तीन दोष माने गएँ हें। सारा आयुर्वेदिक निदान का मुख्य  आधार यही हे। यहाँ  वात  का अर्थ वायु से नहीं होकर इसकी क्रिया 'गतिशीलता' से,पित्त का अर्थ अग्नि की जलने या पचा सकने की क्रिया,और कफ का अर्थ मुह या नाक से निकलने वाले चिकेने  कफ से नहीं होकर उसके जेसी प्रक्रति से हे। ये तीनो दोष के सामान होने का अर्थ हे तीनो प्रक्रतियां सम होना चाहिए । वायु की अधिक से वेदना या दर्द,कमी से निष्क्रियता',पित्त की अधिकता से जलन, कमी से कुछ भी पचा  नहीं पाना, और कफ की कमी से चिकने पन की कमी, कमजोरी , अधिकता से चिकनेपन की अधिकता, मोटापा जेसे लक्षण हो सकते हें। 

अग्नि शरीर की वह क्रिया हे जो प्रकति अनुसार जेसे किसी भी चीज के अग्नि में तपने से उसमें निखार आता हें अधिकता से नष्ट  होती हे वेसे ही शरीर  की अग्नि(सप्ताग्नियाँ) भी यही करती हे । धातु का यहं अर्थ शरीर के  
रस(द्रव्यता),रक्त(जीवन की शक्ति)मांस(शरीर का मुख्य भाग) मेद(चर्बी जो शरीर का स्टोर रूम हे)  अस्थि,(जिस पर शरीर टिका होता हे) मज्जा (अस्थि के मध्य का भाग जहाँ  पर रक्त कण आदि बनते हें,) और शुक्र (पुरुषत्व और नव जीवन के लिए जरुरी तत्व) ये सात धातुएं जो जीवन के लिए परम आवश्यक हें को सम या समान रहना। न अधिक न कम | एक के बाद एक क्रमश:इन धातुओ का पोषण हमारे द्वारा खाए और पचाए भोजन के द्वारा होता हे। यदि एक भी क्रम (स्टेप) पर विकृति होती हे तो सिस्टम ख़राब होने से प्रक्रिया  बीच में ही रुक जाने से उस धातु में कमी या अधिकता का परिणाम शरीर पर दिख पड़ता है। 

स्वस्थ भोजन


यदि सभी क्रम ठीक चलें तो अंत में बना शुक्र शरीर में "ओज" या तेजस्विता के रूप में दिखने लगता हे।जब यह ओज चेहरे ( शरीर ) पर प्रघट होता है तो उस इन्सान की सभी दस इन्द्रियां ( पञ्च ज्ञानेन्द्रियाँ-आँख, कान, नाक, वाणी और त्वचा । यह पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ है,.पञ्च-कर्मेन्द्रियाँ -(हाथ, पैर, जीभ और मल मूत्र का स्थान ये पाँच हैं, कर्मेन्द्रियाँ कर्म करती हैं)। प्रसन्न या स्वस्थ होने से आत्मा या इन इन्द्रियों का अधिष्ठाता(मालिक/निर्देशक) मन भी प्रसन्न होता है, तो एसा व्यक्ति स्वस्थ कहाता है।

इस बात को गंभीरता पूर्वक पड कर जो भी समझ लेगा में समझता हूँ उसको अपने स्वाथ्य सम्बन्धी सभी प्रश्नों का उत्तर मिल जायेगा।

आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति इन्ही प्राकतिक सिधान्तों  पर निर्भर होती हे । एक आयुर्वेदिक चिकित्सक बारीकी से क्रमशः इन्ही पर गोर करता हे, और किस दोष के घटने या बड़ने से किस धातु के परिपोषण में केसी बाधा आई है, यह जान कर व्यक्ति विशेष को स्वस्थ विषयक सलाह देता है, जिसे मान कर व्यक्ति स्वस्थ रह या हो सकता है। किसी भी स्तर पर दोष धातु   के विकृत या दूषित हो जाने पर  उसको ठीक  या  परिपोषण क्रम को सुधारने के लिए सहयोगी द्रव्य जो सामान्यत:खाए  जा सकने वाले पदार्थो का एक सुविचारित योग(मिश्रण) के रूप में जिसे औषधि भी कहते हें, का प्रयोग निर्देशित करता है।

जेसा की हमने ऊपर पड़ा, उसमें कुछ बातें एसी भी हें जिन्हें सभी कोई समझ सकता हे और स्वयं को स्वस्थ रख  सकता हे। वह यह है की प्रत्येक को अपनी मल क्रिया या शोच पर प्रतिदिन  द्यान देना होगा।  हम रोज जो कुछ  भी खाते या पीते हें वह ही  मल के रूप में विसर्जित होता हे यदि वह सामान्य नहीं हे तो  यह आपके विकृति या रोगी होने की शुरुवात  हो सकती हे , हो सकता है कुछ दिन तक इसका शरीर पर कोई भी प्रभाव नहीं पता चले पर इस शोच (मल) की खराबी का कारण खाने वाली सामग्री में परिवर्तन कर स्वस्थ भोजन नहीं लेने का असर जल्दी ही होगा। 


प्रारंभ  में सामान्य दस्त होना या कब्ज होना ,जलन पूर्वक शोच होना,प्राकतिक शोच का नहीं होना, शोच के बाद मान में एसा लगना की और मल आजाता या मान में शोच के प्रति कुछ कमी आदि महसूस होना या किसी भी तरह की तसल्ली न होना ,आदि प्रतीत हो तो समझ लें की कोई भी गभीरता दस्तक देने वाली है। 
स्वस्थ रहने की कामना करने वाले मनुष्यों को तत्काल इस के कारण को हटाने के लिए स्वयं विचार करना चाहिए या यदि समझ नहीं आ रहा हो तो चिकित्सक की सलाह से मल की जाँच करवा कर सहायक ओषधि लेना चाहिए। इसके पाहिले की कोई अन्य धातुओ में विकार पहुच जाये।

स्वस्थ रहने या रोग से बचने का 
एक ही मन्त्र हे उतना और वही 
खाओ जो शरीर के लिए उपयुक्त हो, 
माल किसी का भी हो
 पेट तो अपना हे। 

पर यह देखा गया हे की आधुनिक चिकित्सक विशेषकर अनुभवहीन चिकित्सक मल क्रिया  के बारे में रोगी से कुछ भी प्रश्न नहीं करते, 

जबकि कुशल आयुर्वेदिक चिकित्सक प्रारम्भ से ही यह जानने की कोशिश करता हे।
और इसी मल क्रिया को द्यान रखकर चिकित्सा करता है।

 यह भी कहना होगा की अधिकतर  व्यक्ति भी जानते हुए भी की उन्हें यह खाना, यह नहीं खाना चाहिए पर अधिक नहीं सोचते । स्वाद और जिव्हा के लोभ के चलते सभी कुछ तब तक  खाते पीते रहते हें जब तक की इस प्रकार के हालत नहीं पैदा हो जाते की मज़बूरी में बंद करना या लाभ करने वाले द्रव्य खाना जरुरी नहीं हो जाता । पर अधिकतर मामलो में तब तक देर हो चुकी होती हे और ऊपर लिखे प्रश्न खड़े हो जाते हें ,- हेल्थ बडाना चाहता हूँ, मोटा होना चाहता हूँ, मेरा वजन बड़ता क्यों नही हे,  पतला होना चाहता हूँ,वजन केसे कम करू, बीमारी से केसे बच सकता हूँ आदि।

सब बीमारियों का बीज पेट में ही पनपना शुरू होता हे,और धीरे धीरे विशाल पेड़ बन जाता है। 
पेट में इस बीज को न पनपने देना बुद्धिमानी है। इसी लिए समस्त स्वस्थ की टिप्स पेट को ठीक करने के लिए ही दी जाती हें । इन टिप्स से कितने दिन में लाभ होगा /कितना होगा/ केसे होगा आदि, यह पोधे के आकार के ऊपर निर्भर होगा।  इसी कारण आयुर्वेद में पथ्य अपथ्य (क्या खाना क्या नहीं khana) इस बात पर विशेष गोर किया जाता है। और माधव निदान में कहा भी है की - मिथ्या आहार (भोजन)विहार(जीवन जीने) से दोष पेट में बड़ते हें ,और वहां से अग्नि को दूषित करके ज्वर आदि  रोगों  की उत्पत्ति करते  हें

अधिक/या अनावश्यक/अप्राकृतिक/अनिच्छासे खाकर पेट को दंड क्यों ? यदि दंड दिया तो उस दंड का कष्ट आपको भी उठाना ही होगा।

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समस्त चिकित्सकीय सलाह रोग निदान एवं चिकित्सा की जानकारी ज्ञान(शिक्षण) उद्देश्य से है| प्राधिकृत चिकित्सक से संपर्क के बाद ही प्रयोग में लें|

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स्वास्थ है हमारा अधिकार १

हमारा लक्ष्य सामान्य जन से लेकर प्रत्येक विशिष्ट जन को समग्र स्वस्थ्य का लाभ पहुँचाना है| पंचकर्म सहित आयुर्वेद चिकित्सा, स्वास्थय हेतु लाभकारी लेख, इच्छित को स्वास्थ्य प्रशिक्षण, और स्वास्थ्य विषयक जन जागरण करना है| आयुर्वेदिक चिकित्सा – यह आयुर्वेद विज्ञानं के रूप में विश्व की पुरातन चिकित्सा पद्ध्ति है, जो ‘समग्र शरीर’ (अर्थात शरीर, मन और आत्मा) को स्वस्थ्य करती है|

निशुल्क परामर्श

जीवन के चार चरणौ में (आश्रम) में वान-प्रस्थ,ओर सन्यास अंतिम चरण माना गया है, तीसरे चरण की आयु में पहुंचकर वर्तमान परिस्थिती में वान-प्रस्थ का अर्थ वन-गमन न मान कर अपने अभी तक के सम्पुर्ण अनुभवोंं का लाभ अन्य चिकित्सकौं,ओर समाज के अन्य वर्ग को प्रदान करना मान कर, अपने निवास एमआइजी 4/1 प्रगति नगर उज्जैन मप्र पर धर्मार्थ चिकित्सा सेवा प्रारंंभ कर दी गई है। कोई भी रोगी प्रतिदिन सोमवार से शनी वार तक प्रात: 9 से 12 एवंं दोपहर 2 से 6 बजे तक न्युनतम 10/- रु प्रतिदिन टोकन शुल्क (निर्धनों को निशुल्क आवश्यक निशुल्क ओषधि हेतु राशी) का सह्योग कर चिकित्सा परामर्श प्राप्त कर सकेगा। हमारे द्वारा लिखित ऑषधियांं सभी मान्यता प्राप्त मेडिकल स्टोर से क्रय की जा सकेंगी। पंचकर्म आदि आवश्यक प्रक्रिया जो अधिकतम 10% रोगियोंं को आवश्यक होगी वह न्युनतम शुल्क पर उपलब्ध की जा सकेगी। क्रपया चिकित्सा परामर्श के लिये फोन पर आग्रह न करेंं। ।

चिकित्सक सहयोगी बने:
- हमारे यहाँ देश भर से रोगी चिकित्सा परामर्श हेतु आते हैं,या परामर्श करते हें, सभी का उज्जैन आना अक्सर धन, समय आदि कारणों से संभव नहीं हो पाता, एसी स्थिति में आप हमारे सहयोगी बन सकते हें| यदि आप पंजीकृत आयुर्वेद स्नातक (न्यूनतम) हें! आप पंचकर्म चिकित्सा में रूचि रखते हैं, ओर प्रारम्भ करना चाह्ते हैं या सीखना चाह्ते हैं, तो सम्पर्क करेंं। आप पंचकर्म केंद्र अथवा पंचकर्म और आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रक्रियाओं जैसे अर्श- क्षार सूत्र, रक्त मोक्षण, अग्निकर्म, वमन, विरेचन, बस्ती, या शिरोधारा जैसे विशिष्ट स्नेहनादी माध्यम से चिकित्सा कार्य करते हें, तो आप संपर्क कर सकते हें| सम्पर्क समय- 02 PM to 5 PM, Monday to Saturday- 9425379102/ mail- healthforalldrvyas@gmail.com केवल एलोपेथिक चिकित्सा कार्य करने वाले चिकित्सक सम्पर्क न करें|

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