Rescue from incurable disease

Rescue from incurable disease
लाइलाज बीमारी से मुक्ति उपाय है - आयुर्वेद और पंचकर्म चिकित्सा |

आमवात या आस्‍टियोअर्थराइटिस और रयूमेटायड अर्थराइटिस

     आयुर्वेद में ८० प्रकार के वात रोग माने हे| इनमे यह आमवात भी  हमारे देश में बड़ी उम्र के लोगों के बीचऑर्थराइटिस आम बीमारी है। 50 साल से अधिक उम्र के लोग यह मान कर चलते हैं कि अब तो यह होना ही था। खास तौर से स्त्रियां तो इसे लगभग सुनिश्चित मानती हैं। ऑर्थराइटिस का मतलब है जोड़ में जलन। यह शरीर के किसी एक जोड़ में भी हो सकता है और ज्यादा जोड़ों में भी। इस भयावह दर्द को बर्दाश्त करना इतना कठिन होता है कि रोगी का उठना-बैठना तक दुश्वार हो जाता है।

आधुनिक चिकित्सा विज्ञानं अनुसार अर्थराइटिस मुख्यत: दो तरह का होता है - ऑस्टियो और रिह्यमेटाइड ऑर्थराइटिस। दोनों का मुख्य कारण यूरिक एसिड का बढ़ना होता है। इसमें मरी़ज की हालत इतनी बिगड़ जाती है कि उसके लिए हाथ-पैर हिलाना भी मुश्किल हो जाता है। रिह्यमेटाइड ऑर्थराइटिस में तो यह दर्द उंगलियों, कलाइयों, पैरों, टखनों, कूल्हों और कंधों तक को नहीं छोड़ता है। यह बीमारी आम तौर पर 40 वर्ष की उम्र के बाद होती है, लेकिन यह कोई जरूरी नहीं है। खास तौर से स्त्रियां इसकी ज्यादा शिकार होती हैं।

इससे घट जाती है कार्यक्षमता |
ऑर्थराइटिस के मरी़ज की कार्यक्षमता तो घट ही जाती है, उसका जीना ही लगभग दूभर हो जाता है। अकसर वह मोटापे का भी शिकार हो जाता है, क्योंकि चलने-फिरने से मजबूर होने के कारण अपने रो़जमर्रा के कार्यो को निपटाने के लिए भी दूसरे लोगों पर निर्भर हो जाता है। अधिकतर एक जगह पड़े रहने के कारण उसका मोटापा भी बढ़ता जाता है, जो कई और बीमारियों का भी कारण बन सकता है।
बाहरी कारणों से नहीं
कई अन्य रोगों की तरह अर्थराइटिस के लिए कोई इऩफेक्शन या कोई और बाहरी कारण जि़म्मेदार नहीं होते हैं। इसके लिए जि़म्मेदार होता है खानपान का असंतुलन,आयुर्वेद अनुसार भी यह मिथ्या आहार विहार से होता  हे| इससे शरीर में यूरिक एसिड बढ़ता है। जब भी हम कोई ची़ज खाते या पीते हैं तो उसमें मौजूद एसिड का कुछ अंश शरीर में रह जाता है। खानपान और दिनचर्या नियमित तथा संतुलित न हो तो वह धीरे-धीरे इकट्ठा होता रहता है। जब तक एल्कली़ज शरीर के यूरिक एसिड को निष्कि्रय करते रहते हैं, तब तक तो मुश्किल नहीं होती, लेकिन जब किसी वजह से अतिरिक्त एसिड शरीर में छूटने लगता है तो यह जोड़ों के बीच हड्डियों या पेशियों पर जमा होने लगता है। यही बाद में ऑर्थराइटिस के रूप में सामने आता है। शोध के अनुसार 80 से भी ज्यादा बीमारियां अर्थराइटिस के लक्षण पैदा कर सकती हैं। इनमें शामिल हैं रिह्यमेटाइड ऑर्थराइटिस, ऑस्टियो ऑर्थराइटिस,गठिया, टीबी और दूसरे इऩफेक्शन। इसके अलावा ऑर्थराइटिस से पीडि़त व्यक्ति को रिह्यमेटाइड ऑर्थराइटिस, गठिया कमर दर्द की शिकायत हो सकती है। इनमें कई बार जोड़ों के बीच एसिड क्रिस्टल जमा होने लगते हैं। तब चलने-फिरने में चुभन और टीस होती है।

बदलें जीने का ढंग --
इससे निपटने का एक ही उपाय है और वह है उचित समय पर उचित खानपान। इनकी बदौलत एसिड क्रिस्टल डिपॉ़जि़ट को गलाने और दर्द को कम करने में मदद मिलती है। इसलिए बेहतर होगा कि दूसरी ची़जों पर ध्यान देने के बजाय खानपान की उचित आदतों पर ध्यान दिया जाए, ताकि यह नौबत ही न आए, फिर भी ऑर्थराइटिस हो गया हो तो ऐसी जीवन शैली अपनाएं जो शरीर से टॉक्सिक एसिड के अवयवों को खत्म कर दे। 

इसके लिए यह करें-
एसिड फ्री भोजन करें और शरीर में एसिड को जमने से रोकें।
शरीर से एसिड का स़फाया करने वाले ज़रूरी पोषक तत्वों को शरीर में रोकने की कोशिश करें, जिससे एसिड शरीर में ही जल जाए।

खानपान का रखें ख्‍याल
ऑर्थराइटिस से निपटने के लिए जरूरी है ऐसा भोजन जो यूरिक एसिड को न्यूट्रल कर दे। ऐसे तत्व हमें रो़जाना के भोजन से प्राप्त हो सकते हैं। इसके लिए विटमिन सी व ई और बीटा कैरोटीन से भरपूर खाद्य पदार्थो का इस्तेमाल किया जाना चहिए। इसके अलावा इन बातों पर भी ध्यान दें -
 ऐसी ची़जें खाएं जिनमें वसा कम से कम हो। कुछ ऐसी ची़जें भी होती हैं जिनमें वसा होता तो है लेकिन दिखता नहीं, जैसे-   केक, बिस्किट, चॉकलेट, पेस्ट्री से भी बचें।  दूध लो फैट पिएं।  योगर्ट और ची़ज आदि भी अगर ले रहे हों तो यह ध्यान रखें कि वह लो फैट ही हो।
ची़जों को तलने के बजाय भुन कर खाएं। कभी कोई ची़ज तल कर ही खानी हो तो उसे जैतून के तेल में तलें।
चोकर वाले आटे की रोटियों, अन्य अनाज, फलों और सब्जियों का इस्तेमाल करें।
चीनी का प्रयोग कम से कम करें।
 पंचकर्म से स्वास्थ लाभ: पंचकर्मा थेरेपी 

समस्त चिकित्सकीय सलाह रोग निदान ,एवं चिकित्सा की जानकारी ज्ञान(शिक्षण) उद्देश्य से हे| प्राधिकृत चिकित्सक से संपर्क के बाद ही प्रयोग में लें |.

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